राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड द्वारा पशु परिचर भर्ती परीक्षा 2024 का परिणाम जारी किए जाने के साथ ही नॉर्मलाइजेशन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। परीक्षा छह पारियों में आयोजित हुई थी और इसके परिणाम में कुछ अभ्यर्थियों के अंक कम हो गए, जबकि कुछ के बढ़ गए। इस फैसले पर अभ्यर्थियों ने नाराजगी जताते हुए इसे अनुचित बताया है।
Pashu Parichar Normalization News : क्या है मामला?
राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड ने 1, 2 और 3 दिसंबर 2023 को पशु परिचर भर्ती परीक्षा का आयोजन किया था। 6,433 पदों के लिए हुई इस परीक्षा में 10,52,565 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। परीक्षा परिणाम न्यूनतम प्राप्तांक के आधार पर घोषित किया गया, जिसमें 4,06,826 अभ्यर्थियों को फाइनल सूची में जगह दी गई।
परिणाम जारी होने के बाद नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लेकर विवाद शुरू हो गया। आरोप है कि पहली और चौथी पारी में बैठने वाले अधिकांश अभ्यर्थियों के अंक 10 से 15 तक कम कर दिए गए, जिससे कई योग्य अभ्यर्थी मेरिट सूची से बाहर हो गए। वहीं, छठी पारी में बैठने वाले अभ्यर्थियों के अंक 20 से 25 तक बढ़ा दिए गए, जिससे इस पारी के परीक्षार्थियों को फायदा हुआ।
अंक बढ़ने और घटने से मेरिट पर प्रभाव
परिणाम के अनुसार, चार पारियों में अभ्यर्थियों के अंक 4 से 25 तक बढ़े, जबकि दो पारियों में 10 से 15 अंकों की गिरावट देखी गई। दूसरी पारी में 3 से 5 अंक बढ़े, तीसरी पारी में 10 से 15 अंक बढ़े, जबकि पांचवीं पारी में 10 तक अंक बढ़े। छठी पारी में सबसे अधिक 20 से 25 अंक बढ़े, जिससे इस पारी के अभ्यर्थियों को बड़ा लाभ मिला।
अभ्यर्थियों ने जताई आपत्ति
अभ्यर्थियों ने सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर आक्रोश व्यक्त किया। कई उम्मीदवारों का कहना है कि नॉर्मलाइजेशन का फार्मूला स्पष्ट नहीं किया गया, जिससे मेरिट सूची प्रभावित हुई है। चौथी पारी के कई अभ्यर्थी 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने के बावजूद मेरिट में स्थान नहीं बना पाए, जबकि छठी पारी के अभ्यर्थियों को अधिक अंक मिलने से उनकी रैंकिंग बेहतर हो गई।
अभ्यर्थियों का आरोप है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इससे मेरिट प्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। उनका कहना है कि यदि नॉर्मलाइजेशन के तहत अंकों में इतनी अधिक वृद्धि या कटौती की जाती है, तो यह चयन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
नॉर्मलाइजेशन का प्रभाव और विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि नॉर्मलाइजेशन का सीधा असर अभ्यर्थियों की मेरिट पर पड़ता है। यदि अंकों में 15-20 की कमी होती है, तो कई योग्य अभ्यर्थी चयन से बाहर हो सकते हैं। वहीं, अंक बढ़ने से अन्य अभ्यर्थियों को लाभ मिल सकता है।
शिक्षाविदों का सुझाव है कि नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए, जिससे उम्मीदवारों को स्पष्ट रूप से समझ में आए कि उनके अंक किस आधार पर घटाए या बढ़ाए गए हैं।